कोलोरेक्टल कैंसर के कारण, लक्षण और बचाव: डॉ. सौरभ तिवारी, कंसल्टेंट, ऑन्कोलॉजी व कैंसर केयरमैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल देहरादून
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हरिद्वार : कैंसर दुनिया भर में मृत्यु का प्रमुख कारणों में से एक है। हालांकि, चिकित्सा विज्ञान में प्रगति के साथ, अब कई प्रकार के कैंसर ठीक किए जा सकते हैं, जिनमें चौथे स्टेज पर होने के बावजूद भी उपचार की संभावना है। ऐसा ही एक कैंसर कोलोरेक्टल कैंसर है, जो भारत में चार सबसे आम कैंसर में शामिल है।
कोलोरेक्टल कैंसर आमतौर पर, आंतों या रेक्टल परत जिसे पोलिप कहा जाता है, उसकी सतह पर बटन जैसी गाँठ के रूप में शुरू होता है। जैसे-जैसे कैंसर बढ़ता है, यह आंत या मलाशय की दीवार पर फैलना शुरू कर देता है। आस-पास की लसीका ग्रंथि पर भी फैल सकता है। चूँकि आंत की दीवार और अधिकांश मलाशय से रक्त को लिवर में ले जाया जाता है, कोलोरेक्टल कैंसर पास की लसीका ग्रंथि में फैलने के बाद लिवर में फैल सकता है। कोलोरेक्टल कैंसर आमतौर पर बुजुर्गों में अधिक पाया जाता है, लेकिन यह युवा लोगों को भी प्रभावित कर सकता है।
कोलोरेक्टल कैंसर होने की संभावना उम्र के साथ बढ़ जाती है, खासकर 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में। सफल उपचार के लिए इसका समय पर पता लगना बेहद महत्वपूर्ण है।कोलोरेक्टल व कोलन कैंसर के लक्षणों में मल में खून आना या काला होना, लगातार पेट दर्द या ऐंठन, वजन में अचानक कमी , अपच, पेट में भारीपन या गैस की समस्या, मलत्याग में बदलाव, जैसे दस्त या कब्ज की समस्या, कमजोरी और थकान आदि प्रमुख है।
कोलोरेक्टल कैंसर का इलाज ट्यूमर की स्थिति और कैंसर के स्तर पर निर्भर करता है। नियमित जांच के माध्यम से शुरुआती पहचान से ठीक होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। आमतौर पर कोलोरेक्टल कैंसर की जांच 50 वर्ष की उम्र में कराने की सलाह दी जाती है, लेकिन जिन लोगों को अधिक जोखिम होता है, उन्हें जल्द ही जांच शुरू करानी चाहिए।
मुख्य उपचार विकल्पों में सर्जरी शामिल है, जिसके द्वारा कैंसरग्रस्त टिश्यू को हटाया जाता है, कीमोथेरेपी, जो कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करती है, और रेडियोथेरेपी, जो विकिरण के माध्यम से कैंसर कोशिकाओं को निशाना बनाकर खत्म करती है। सफल उपचार के बाद भी, कैंसर मरीजों को निरंतर देखभाल और नियमित जांच की आवश्यकता होती है ताकि उनके स्वास्थ्य की निगरानी की जा सके और कैंसर की पुनरावृत्ति को रोका जा सके।
कोलोरेक्टल कैंसर के कुछ कारणों जैसे कि उम्र और आनुवंशिकता को नियंत्रित नहीं किया जा सकता, लेकिन जीवनशैली में बदलाव करके इसके जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है। स्वस्थ आहार लेना, शराब के सेवन से बचना या उसे सीमित करना, धूम्रपान छोड़ना और नियमित रूप से व्यायाम करना इस जोखिम को कम करने में सहायक हो सकते हैं। एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर और नियमित जांच करवाकर कोलोरेक्टल कैंसर होने की संभावना को काफी हद तक घटाया जा सकता है। जागरूकता बढ़ाना समय पर जांच कराने से कई लोगों की जान बचाई जा सकती है और उपचार के परिणामों में सुधार किया जा सकता है।
कोलोरेक्टल कैंसर एक गंभीर लेकिन रोके जाने योग्य और इलाज योग्य बीमारी है। इसके जोखिम कारणों को समझ कर, लक्षणों को पहचान कर और रोकथाम के उपाय अपना कर व्यक्ति कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से अपना बचाव कर सकता है। नियमित जांच और जीवनशैली में बदलाव कोलोरेक्टल कैंसर के बोझ को कम करने, समय पर पहचान सुनिश्चित करने और जीवित रहने की दर को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।